पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२०८

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परिवर्तन-प्रकरण की भाँति १७ पृष्ठ में छपे थे। रागाष्टयाम में पाठ पहर के चौंसठ राग हैं और यह संवत् १९३१ में बना था। समस्याप्रकाश संवत् १९३२ में छग था और इसमें स्फुट समस्याओं की पूतियाँ हैं। (४) भंगारसरोज ११ पृष्ठ का एक छोटा-सा ग्रंथ है, जिसमें भंगाररस के कवित्त हैं और जो संवत् १९१० में बना था। (५) हीराजुबिली में १३ पृष्ठों द्वारा संवत् १९५३ में महारानी के साठ वर्ष राज्य करने का श्रानंद मनाया गया है। (६) चंद्रकलाकाव्य में बंदी की चंद्रकला वाई की प्रशंसा है। यह भी संवत् १९५३ में अना था और इसमें २० पृष्ठ हैं। (७) अन्योक्तिमहेश्वर संवत् १९५४ में रामपुर मथुरा के ठाकुर महेश्वरबाश के नाम पर बना था। इसमें ५६ पृष्ठों द्वारा अन्योक्तियाँ कही गई हैं। (2) ब्रजराजविहार २७० पृष्ठ का एक बड़ा ग्रंथ इटौंजा के राजा इंद्रविक्रमसिंह की प्राज्ञानुमार संवत् १९५४ में समाप्त हुआ। इसमें श्रीकृष्णचंद की कथा विविध छंदों में सविस्तर वर्णिन है। (१) प्रेमतरंग बलदेवजी को कविता का संग्रह-सा है। इसमें २३ पृष्ठ हैं, और यह संवत् १९५८ में बना था । इस ग्रंथ में स्फुट विषयों की कविता है।। (१०) वजदेवविचारार्क एकसौ पृष्ठ का गद्य-पद्यमय ग्रंथ संवत् १९६२ में बना था। इसमें पद्य का भाग बहुत ही न्यून है। इस ग्रंथ में अवस्थीजी ने बहुत-से विषयों पर अपनी अनुमति प्रकट की है, और सब विपयों में इनका यही मत है कि असंभव बातों के दिखानेनाले, ज्योतिष के कहनेवाले, बड़ी-बड़ी भड़कीली दवाइयों के बेचनेवाजे आदि प्रायः चंचक हुआ करते हैं । इन्होंने यत्र-तत्र ऐसे लोगों से बचने के भी अच्छे उपाय लिखे हैं। यद्यपि अवस्थीजी अँगरेजी नहीं पढ़े हैं, तो भी यह ग्रंथ वर्तमान काल के