पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२०७

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११३८ मिश्रपंधु-विनोद मिले । वर्तमान अथवा श्रोड़े ही दिनों के मरे हुए कवियों में निम्न- लिखित कविगण इनके मित्र अथवा मुलाक़ाती थे-औध, लछिराम, सेवक, सरदार, हरिश्चंद्र, लेखराज, द्विजराज, व्रतराज, दीन, आनंद, अनिरुद्धसिंह, विशाल, लच्छन, देवीदत्त, जंगली, महाराज रघुराज- सिंह (रीवा), गुरुदीन इत्यादि । ये महाशय हम लोगों पर भी कृपा करते थे और अपने बनाए हुए सब ग्रंथों को एक-एक प्रति आपने हमें दी थी। आप जब लखनऊ पाते थे तब हमारे ही यहाँ ठहरने की कृपा करते थे। अपना उपर्युक्त वृत्तांत एवं अपने ग्रंथों का हाल हमें इन्हीं ने बताया था, जो यथातथ्यरूपेण हमने यहाँ लिख दिया। खेद है, अब इनका स्वर्गवास हो गया । इनके दो पुत्र चक्रधर और पद्मधर भो कविता करते हैं। शोक का विषय है कि पद्मधर का देहांत हाल में हो गया । इनके ग्रंथों का हाल हम नीचे लिखते हैं- (१) प्रताप-विनोद में पिंगल, अलंकार, चित्रकाव्य, रसभेद और भावभेद का वर्णन है। यह १७६ पृष्ठ का ग्रंथ संवत् १९२६ में रामपूर मथुरा जिला सीतापुर के गकुर रुद्रप्रतापसिंह के नाम पर बना था। (२) श्रृंगार-सुधाकर में श्रृंगाररस, शांतरस, सज्जनों और असजनों का वर्णन है। यह हथिया के पवार दलथंभनसिंह की आज्ञा से संवत् १९३० में बना था। इसमें पचास पृष्ठ हैं। इन दलर्थभनसिंह के पुत्र बजरंगसिंह हमारे मित्र थे। ये महाशय भी अच्छा कान्य करते थे और काशी-कोतवाल की पचीसी-नामक एक ग्रंथ भी इन्होंने बनाया है। (३) मुक्तमाल में शांतिरस के १०८ छंद हैं। यह संवत् १९३१ में रानी कटेसर जिला सीतापूर के कहने से बना था। इसी ग्रंथ के साथ इन्हीं रानी साहबा की आज्ञा से रागाष्टयाम और समस्या- प्रकाश-नामक २८ सफ़े के दो ग्रंथ और भी बनकर तीनों एक ही ग्रंथ