पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२००

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परिवर्तन-प्रकरण ११३३ किया, जिस पर इन्हें बड़ा पुरस्कार दिया गया। इनकी जागीर में पाँच गाँव थे। इन्होंने वंशसमुच्चय तथा डिंगलकोप-नामक ग्रंथ बनाए । इनकी कविता प्राकृन-मिश्रित व्रजभाषा में होती थी। इनकी गणना तोप की श्रेणी में की जाती है। उदाहरण- कीरति तिहारी सेत सत्रुन के आनन मैं, ठौर-ठौर अहो निसि मेचक मिला है। बहुत प्रसाप तप्त साधु जन मानस को, ऐसो सीर अमृत ज्यों सीतज करावै है। प्रभु से प्रतापी प्रजापालन प्रचंड दंड, उत्तम ब्रजाद चित्त सज्जन चुरावै है। महाराव राजा श्रीदिवान रघुबीर धीर, रावरे गुन के रवि लच्छन स्वभावै है ॥ १ ॥ सेस श्रमरेस औ गनेस पार पार्दै नहिं, जाके पद देखि-देखि श्रानंद लियो पारे । अक्षर है मूल फेरि व्यक्त श्री अव्यक्त भेद, ताही के सहाय सब उपमा दियो करें । अव्यय है संज्ञा तीनौ काल मैं अमोघ क्रिया, वाके रसलीन होय पीयुष पियो करें; रचना रचावै केहि भाँति ते मुरारिदास, ऐसे शब्द ईश्वर को मनन कियो करें ॥२॥ नाम-- (२०८५ ) शालिग्राम शाकद्वीपी (ब्राह्मण) कोपा- गंज, जिला आजमगढ़। अंथ-(१) काव्यप्रकाश की समालोचना, (२) भाषाभूपण की समालोचना। विवरण-इनका जन्म संवत् १८९६ में हुआ था, और १९६० में