पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१९८

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परिवर्तन-प्रकरण विश्वनाथसिंहजी सं० ११२० में राज्य पर थे। उसी समय यह भी विद्यमान थे। इनका कविताकाल १९२० के लगभग समझना चाहिए। अमल अनार अरबिंदन को वृंद वारि, विवाफल विद्म निहारि रहे तूलि-तूलि; गेंदा औ गुलाब गुजलाला गुलाबास, आब जामैं जीव जावक जपा को जात भूति-भूलि। फेरन फबत तैसी पायन ललाई तोल, इंगुर भरे से ढोल उमड़त मूत्ति-भूलि ; चाँदनी-सी चंदमुखी देखौ ब्रनचंद उठे, __चाँदनी बिछौना गुलचाँदनी-सी फूलि-फूलि ॥१॥ गृहिन दरिद गृह-स्यागिन विभूति दियो, . पापिन प्रमोद पुन्यवंशन छलो गयो। ग्रसित अहेश कियो सनि को सुचित्त, लघु व्यालन अनंद शेप मारन दलो गयो। फेरन फिरावर गुनीन नित नीच द्वार, गुनन विदीन तिन्हें बैठे ही भलो भयो। कहाँ जो गनाउँ दोख तेरे एक भानन सों, नाम चतुरानन पैचूकतै चलो गयो ॥२॥ जनम समै मैं ब्रज-रच्छन समै मैं, सजि ___ समर समै मैं ज्ञान यज्ञ जप जूट मैं; देव देवनाथ रघुनाथ विश्वनाथ करी, फूल जल दान बान बरखा अटूट मैं। फेरन विचारयो शुभ वृष्टि को विचार यश, चारिहू जनेन को प्रसिद्ध चारि खूट मैं ; अवध अकूट मैं गोबरधर कूट मैं, सुतरल निकूट मैं विचित्र चित्रकूट मैं ॥३॥