पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१९६

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परिवर्तन-प्रकरण ११२७ बहुत थी, और जाना-बाना भी बहुधा रहता था। लेखराजजी इनसे ३ वर्ष बड़े थे । इन कारणों एवं स्वभावतः रुचि होने से आपका कविता की ओर भी रुझान हो गया और सैकड़ों छंद बन गए, पर पीछे से व्यापार में विशेष रूप से पड़ जाने के कारण श्रापकी कविता- रचना बिलकुल छूट गई, यहाँ तक कि प्राचीन छंदों के रक्षित रखने का भी आपने प्रयत्न न किया । फिर भी प्राचीन कवियों के ग्रंथ देखने की रुचि आपली वैसी ही रही। और हम लोगों को काव्य-तत्त्व बताने में श्राप सदैव चाव रखते रहे। अापकी रचना में अब केवल थोड़े- से छंद सुरक्षित हैं, जिनमें से उदाहरण-स्वरूप दो छंद यहाँ लिखे जावेंगे। आपके चार पुत्र और दो कन्याएँ दीर्घजीवी हुई . खेद है कि अब आपके बड़े पुत्र और बड़ी कन्या का देहांत हो गया है। शेष छोटे तीन पुत्र इस इतिहास-ग्रंथ के लेखक हैं। विशाल कवि आपके छोटे जामात थे। इनकी बड़ी पुत्री के दो पुत्र हैं, जिनमें छोटा भाई अनंत. राम वाजपेयी गद्य लेखन का बड़ा उत्साही है। वह कोआपरेटिव- सोसाइटी में नौकर है । इनका पौत्र लक्ष्मीशंकर मिश्र बैरिस्टर है। वह भी कुछ-कुछ छंद बनाने और गद्य लिखने में रुचि रखता है। आप कविता में अपना नाम पूर्ण अथवा पूरन रखते थे। उदाहरण- लान-से लाल बने हग लाल के, जावक माल बिसाल रह्यो फबि, श्यों अधरान मैं अंजन लीक है, पीक भरे कहि देव महाछवि। पीत पटी बदजी कटि मैं लखि, नारि लकोच नहीं सो रही दवि; पूरन प्रीति की रीति यही पिय, दच्छिन झूठ कहैं तुमको कमि । पानी धूम इंधन मसाला संग धातस के, हिकमति कोठरी अनूप हहरानी है। उठत प्रभंजन के धन घहरात और- और ठहरात जात जोर की निसानी है।