पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१९५

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११२६ मिश्रबंधु-विनोद हनुमान नित गा राम सुजस अनंद पै । जौलौं अलकेस बेत महिमा सुरेस सुर, सरिता समेत सुर भूतल फर्निद पै; विजै-नप नंद श्रीभवानीसिंह भूप मनि बखन बिलंद तौलौं राजौ मसनंद पै ॥२॥ (२०००) बालदत्त मिश्र ( पूरन) श्रापका जन्म संवत् १८६५ में भगवंतनगर जिला हरदोई में प्रसिद्ध माँझगव के मित्रोंवाले देवमणि-वंश में हुआ था। आपके पिता पंडित बालगोविंद मिश्र बड़े ही दृढ़ आचरण के मनुष्य थे और प्राचीन प्रथा के ऐसे विकट अनुयायो थे कि गुरुजनों की लाज निभाने को इनसे उन्होंने यावजीवन संभाषण नहीं किया। इनके बड़े भाई मुखलालजी के कोई पुन जीवित नहीं रहा, सो इनकी स्त्री ने अपने एक मात्र पुत्र बालदत्तजी को अपनी जेठानी को दे दिया । इस समय आपकी अवस्था सात वर्ष की थी। इसी समय से अपने काका के साथ श्राप इटौंजा जिला लखनऊ में रहने लगे । काका के पीछे आपने उनका काम-काज सँभाला और अपनी व्यापारपटुता से थोड़ी सी संपत्ति को बढ़ाकर अच्छा धन उपार्जन किया । आपने संवत् १६५६ में अपने मृत्युकाल तक साधारणतया बड़ी ज़िमींदारी पैदा कर ली। यावज्जोवन आपने गंभीरता को निबाहा । सुरलोक-यात्रा से ३ वर्ष प्रथम श्राप इटौंजा छोड़ सकुटुंब लखनऊ में रहने लगे थे। बालक- पन में आपने हिंदी तथा संस्कृत का कुछ अभ्यास किया और कुछ गीता को भी पढ़ा, परंतु इनके काका को इनका गीता पढ़ना इस कारण अरुचिकर हुआ झि गंभीर स्वभाव को बढ़ाकर कहीं ये संसार-त्यागी न हो जावें । काका की आज्ञा मानकर इन्होंने गीता छोड़ दिया। गधौली के लेखराज कवि इनके एक अन्य काका के पौत्र थे । गॅधौली इटौंजा से केवल १२ मील पर है, सो इन दोनों महाशयों में प्रीति