पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१९४

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परिवर्तन-प्रकरण ११२५ दिनों से ये बेचारे कुछ विक्षिस से हो गए थे और संवत् १६६७ में स्वर्गवासी हुए। (२०७९) गदाधर भट्ट __ ये महाशय मिहीलाल के पुत्र और प्रसिद्ध कवि पद्माकर के पौत्र थे। इनका स्वर्गवास दतिया में, ८० वर्ष की अवस्था में, संवत् १९५५ के लगभग हुआ था। जयपुर, दतिया और सुठालिया के महाराजाओं के यहाँ इनका विशेष मान था। जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह की इच्छानुसार इन्होंने संवत् १९४२ में कामांधक-नामक संस्कृत-नीति का भाषा-छंदों में अनुवाद किया । अलंकारचंद्रोदय, गदाधर भट्ट की बानी, कैसरसभाविनोद, और छंदोमंजरी-नामक इनके ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। अंतिम ग्रंथ कविजी ने सुठालिया के राजा माधवसिंह के श्राश्रय में बनाया। इसकी कवि ने वार्तिक व्याख्या भी लिखी थी। गदाधरजी का काव्य 'परम प्रशंसनीय और मनोहर है। इनकी भाषा खूब साफ़, सानुप्रास और श्रुतिमधुर है। हम इनको तोष कवि की श्रेणी में रखेंगे। उदाहरण- चारों ओर अटवी अटूट अवनी पै बनी, तटिनी तड़ाग धेनुसिंहन मगर है। गदाधर कहै चार श्राश्रम बरन चार, सीत सत्यवादी दानी भूपति सगर है। आपगा दुरग गज बाजि रथ प्यादे धने, अंबिका महेस प्रभु भक्ति में पगर है । अमट नरेश माधवेश महाराज जहाँ, वैरिन को मारिया सुठारिया नगर है ॥१॥ जौलौं जन्हुकन्यका कलानिधि कलानिकर, . जटिल जटानि बिच भाल छवि छंद पै; गदाधर कहै जौलौं अश्विनी कुमार,