पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१८७

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१११८ मिश्रबंधु-विनोद नियमानुसार हिंदी की उन्नति करना भी एक धर्म है । ये महाशय गुजराती थे, तथापि राष्ट्र-भाषा समझकर इन्होंने हिंदी ही को आदर दिया । यदि संसार के सर्वोत्कृष्ट महानुभावों की गणना की जावे, तो उसमें स्वामी दयानंदजी का नंबर अच्छा होगा। इस प्रबंध के लेखक आर्य-समाजी नहीं हैं और प्रतिमा पूजन तथा श्राद्ध' इत्यादि पर पूरा विश्वास रखते हैं, तथापि उन्होंने औचित्य न छोड़ने के कारण उपर्युक्त बातें कही हैं। ४२ वर्षों में ही आर्य-समाज ने बहुत बड़ी उन्नति कर ली है, और इस समय लाखों मनुष्य पंजाब, युक्तप्रांत, राजपूताना, मध्यदेश आदि में आर्य-समाजी हैं । इस मत की विशेष उन्नति पंजाब में है। पंजा- बियों ही ने थोड़े दिन हुए काँगड़ी में गुरुकुल स्थापित किया, जिसमें प्राचीन प्रथा के अनुसार शिक्षा दी जाती है । दयानंद-ऐंग्लो-वैदिक कॉलेज भी स्वामीजी के अनुयायियों का स्थापित किया हुआ बहुत ही उत्तमता से चल रहा है। उसमें बहुत बड़ी संख्या में विद्यार्थी विद्याध्ययन कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त बहुत-से स्कूल, अनाथालय, कन्या-पाठशाला, समाज द्वारा स्थापित और परिचालित हो रहे हैं। भारतोचति में समाजियों ने खूब अच्छा काम किया है और कर रहे हैं । जाति को कर्मभव मानकर स्वामीजी और समाज ने पतित जातियों के उद्धार में बहुत सहायता दी । भारतधर्ममहामंडल को भी हिंदुओं ने स्वामीजी एवं आर्य-समाज ही के कारण स्थापित किया, जिससे संस्कृत और भाषा-प्रचार को बहुत लाभ हुआ और होने की आशा है। यदि समाज द्वारा हिंदू-धर्म की बुराइयों का कथन न होता, तो हिंदू उसके रक्षणार्थ कोई उपाय कभी न करते, और न सनातनधर्ममहामंडल स्थापित होता। इस मंडल की उत्ते- जना से हरिद्वार में एक ऋषिकुल खोला गया है, जिसमें हिंदू-धर्म के अनुसार विद्यार्थियों की शिक्षा होती है। समाज एवं मंडल ने