पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१८६

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परिवर्तन-प्रकरण १११७ इन महाशय की रचना के ये ग्रंथ है-सत्यार्थप्रकाश, वेदांग- प्रकाश, पंचमहायज्ञविधि, संस्कारविधि, गोकरुणानिधि, आर्योद्देश्य- रत्नमाला, भ्रमोच्छेदन, भ्रांतिनिवारण, श्रार्याभिविनय, व्यवहार- भानु, वेदविरुद्धमतखंडन, स्वामीनारायणमसखंढन, वेदांतध्वांत- निवारण, ऋग्वेदादिभाष्य भूमिको, ऋग्वेदभाष्य और यजुर्वेद- भाष्य । इन्होंने जितने भापा-ग्रंथ लिखे, उनमें वर्तमान शुन्छ हिंदी का प्रयोग किया । श्रापकी भाषा बहुत ही सरल होती थी। ___ संस्कृत के बड़े भारी विद्वान् होने पर भी आपने विशेपतया हिंदी को श्रादर दिया और अपने प्रायः सभी ग्रंथ हिंदी में लिखे। ऐसे महात्मा पुरुष इस संसार में बहुत कम हुए हैं । इन्होंने याव- जीवन अखंड ब्रह्मचर्य व्रत रक्खा और सदैव परोपकार तथा देश-सेवा की। अपने उपदेशों में श्राप भारतोन्नति का बहुत बड़ा ध्यान रखते थे। यदि इनका मत पूरा-पूरा स्थिर हो जावे, तो भारत की बहुत-सी अवनतिकारिणी रस्में एकबारगी मिट जावें । जैसे महात्मा बुद्धदेव ने अपने समय की भारतमूलोच्छेदनकारिणी सभी चालों को हटाकर सीधा-सादा बौद्वधर्म चलाया था, उसी प्रकार इस महर्षि ने भारत- मुखोज्ज्वलकारी प्रार्थ-समाज के सिद्धांतों को स्थिर किया है। यह एक ऐसी औपध है, जिसके भले प्रकार सेवन से भारत के सभी भारी रोग-दोष शांत हो सकते हैं। अर्थशास्त्र को धर्मसिद्धांतों से मिला- कर इहलोक और परलोक दोनों में सुखद मत स्थापित करने में यह महात्मा समर्थ हुआ है। वेदों को इसी महात्मा ने पुनर्जन्म-सा दिया। भारतवर्ष में बुद्धदेव, शंकर स्वामी और स्वामी दयानंद यही तीन मुख्य धर्मप्रचारक हुए हैं । इस महात्मा से संस्कृत तथा हिंदी-प्रचार को भी बहुत बड़ा लाभ पहुंचा और आर्य-समाज के