पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१६३

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मिश्रबंधु-विनोद नाम-(२००५) हृदेश, झाँसी। ग्रंथ-विश्ववशकरन । रचनाकाल--१९०४॥ उदाहरण- घोर धन सघन मदांध मतवारे फिरे, धुरवा धुकारन सों धरा धमकत है; गरज गरजकर लरजत भूमि चूमि, झूमत झुकत मद बुंद झमकत है। भनत हृदेश लखै नाडिली अटा पै चदि, ___अंग-अंग नग जगमग दमकत है। नीलपट उमड़ि घटा-सी लहरात काम, तदफ बटा-सी चंचला-सी चमकत है। नाम-(२००५) कपूर विजय या चिदानंद । ग्रंथ-स्वरोदय, आध्यात्मिक स्फुट पद । रचनाकाल-१९०५ के पूर्व । विवरण-संवेगी साधु वथा अपने रंग में मस्त रहा करते थे। उदाहरण- जौ लौं तव न सूझ पडैरे। सौ लौं मूढ़ भरम बस भूल्यौ मत समता गहि जग सों नरे। अकर रोग शुभ कंप अशुभ लख भवसागर इण भाँति मडैरे; धान काज जिम मूरख खितहड़ असर भूमि को खेत खरे । उचित रीति अोलख बिन चेतन निस दिन खोटो घाट घडैरे; मस्तक मुकुट उचित मणि अनुपम पग भूषण अज्ञान जडैरे । दुमता वश मन वक्र तुरग जिम गहि विकल्प मग माँहि अडैरे; चिदानंद निज रूप मगन भया तब कुतर्क सोहि नाहि नहेरे । नाम-(२००६) परमसुख ।