पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१३४

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परिवर्तन-प्रकरण मधुकर मेरे ढिग जनि श्राय । से हरजाई बंसकलंकी सत्र फूलन वसिजाय । कारे सबै कुटिल जग जाने कपटी निपट लवार; अमृत पान करें विष उगिले अहिकुल प्रतछ निहार। देखत चिकनी सुभग चमकनी राखी मंजु बनाय; कारी अनी बान की पैनी लगत पार है जाय । कारी निसि चोरन को प्यारी औगुन भरी अनेक ; ललितकिशोरी प्रीति न करिहौं कारे सों यह टेक ॥४॥ इस समय के अन्य कविजन नाम--(१८२३) उन्नडजी। ग्रंथ-(१) भगवत पिंगल, (२) मेघाडंबर. (३) खुसवोकमारी, (४) भगवद्गीता भाषा, (५) उन्नड बावनी, (६) - ब्रह्माछत्तीसी, (७) ईश्वरस्तुति, (८) नीतिमर्यादा। रचनाकाल-१८६० के पूर्व।। विवरण-कच्छदेशांतर्गत खाखरग्राम के मकर थे । इनका _ स्वर्गवास सं० १८९२ में हुआ था। नाम-(१८२३ ) आजम । ग्रंथ-(१) षट्ऋतु, (२) नखशिख । कविताकाल-100 नाम-(१८२४ ) उदयचंद ओसवाल भंडारी। ग्रंथ(१) रसनिवास, (२) ररश्चंगार, (३) दूपणदर्पण, (१) ब्रह्मपबोध, (५) ब्रह्मविलास, (६) भ्रमविहंडन । कविताकाल-11601 विवरण-श्राश्रयदाता महाराजा मानसिंह नाम -(१८२५) दासदलसिंह। ग्रंथ–दलसिंहानंदप्रकाश ।