पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१३२

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१०१३ परिवर्तन-प्रकरण करने से इनकी रचना बहुत ही उत्कृष्ट और प्रशंसनीय है। हम इनको दास की श्रेणी का कवि मानते हैं। इनके रचे ये ग्रंथ हैं- अष्टयाम से ६ तक 1 जिल्द) अष्टयाम ७ से ११ तक २, २००६पृष्ठ लीलासंग्रह अष्टयाम ३ , ज्वालादिक मानलीला ४, रसकलिकादल १ से २४ तक ४ जिल्द ६१७ पृष्ठ लस्कैप साइज । कहीं-कहीं गद्य भी इन्होंने लिखा है। द्वि० ० रि० में इनका एक और ग्रंथ स्फुट पद-नामक मिला है। उदाहरण- गजल मटकी को प्राबरू की चट चौरहे में फोड़े। क्या भाई-बंद पुरजन सब दुर्जनों को छोड़े। उल्फत जहाँ कि तिन-सी ललिताकिशोरीताई। चंचल छबीले जालिम जानाँ से नैन जोड़े। इस रस के पावे चसके जेहि लोकलाज खोई; मैं बेंचती हूँ मन के माखन को लेवे कोई ॥१॥ पद चालिस है अध चंद थके। चंचल चारु चारि खंजन बर चितै परसपर रूप छके । दामिनि तीनि अनेक मधुपगन ललित भुजंगम संग जके, अष्टादस अरबिंद अचल अलि ललितकिशोरी आजु टके ॥२॥ दोहा अंग-अंग सों अंबुकन झरि-मरि श्रावत नीर। चंद सवन पीयूष के बरसत दामिनि बीर ॥३॥ नील बरन जल जमुन तिय चपल इतै उत जाहि । धसी अनेकन दामिनी सिंधु स्याम धन माहि ॥ ४ ॥