पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१३१

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१०६२ मिश्रबंधु-विनोद मान, मानमोचन, रास, भोजन, सोने, जागने आदि के और विषय बहुत कम पाए हैं। ये कविगण विशेष भक्त तथा भक्ति-विषय में लीन थे, सो इनको इतने ही विषय अलम् थे, परंतु सर्वसाधारण तो इस लीला तथा विहार में उतना श्रानंद नहीं पा सकते, अतः इन गोसाई संप्रदायवाले कवियों की कविता उसनी रुचिकर नहीं होती। इन लोगों की रचनाओं से सर्वसाधारण को क्या शिक्षा मिलती है ? इस प्रश्न पर विचार करने से शोकपूर्वक कहना ही पड़ता है कि इस कवितासमुदाय से साधारण जनों के चरित्र शुद्ध होने की जगह विग- हने की अधिक संभावना है । इस प्रथा के संचालक लोग बहुधा भक्त और विरक्त थे । उनको ये वर्णन बाधा नहीं कर सकते थे, परंतु सर्व- साधारण तो इन वर्णनों को पठन करके अपने चित्तों को वश में नहीं रख सकते। हम लोग संसारी जीव हैं। हमारे वास्ते जो कविता या प्रबंध रचे जाय, वे शिक्षापूर्ण होने चाहिए । ऐसा न होकर यह काव्य उसका उलटा प्रभाव हम लोगों पर छोड़ता है । तिस पर भी भाषा- साहित्य को इन लोगों से लाभ ही हुश्रा, क्योंकि यदि इस संप्रदाय के कविगण इतनी काव्य-रचनान किए होते, तो हिंदी-साहित्य आज इतना परिपूर्ण तथा मनोरंजक न होता, अस्तु । इनके छोटे भाई साह फुदनलाल भी कवि थे और इनके जो ग्रंथ अपूर्ण रह गए थे उनकी पूर्ति उन्होंने कर दी थी, परंतु उन्होंने अपना नाम पृथक् कहीं नहीं लिखा, न कोई ग्रंथ ही अलग बनाया। उनकी यह महानुभावता प्रशंसनीय है। किसी- किसी छंद में ललितमाधुरी नाम पड़ा है। यही उनका उपनाम था। ललितकिशोरीजी का कान्य बड़ा ही सरस, मधुर और प्रेमपूर्ण है। इनकी रचना से जान पड़ता है कि ये भाषा, फारसी तथा संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। जगह-जगह पर इन्होंने फारसी, अरबी और संस्कृत के शब्दों का प्रयोग किया है । खड़ी बोली की भी कविता इन्होंने यत्र तन्त्र की है और कहीं-कहीं कूट भी कहे हैं । सब बातों पर निगाह