पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१३०

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१०६१- परिवर्तन-प्रकरण मालती सवैया 'उदाहरण- सुंदर सात निवास जहाँ गण इंदु अमंगल' कर्ष लिवैया; है पुनि कर्ण सबै पद अंतनि मो मन नाचत मोद दिवया। तेइस वर्ण पदेक शुभ्राजत यो विधि चारिहु चर्ण रचैया ; काव्य बिचच्छन ते सुझहैं यह लच्छन मालति छंद सवैया । (१८२१) ललितकिशोरी साह कुंदनलाल (१८२२) तथा ललित माधुरी साह फुदनलाल इनका जन्म-स्थान लखनऊ था । ये जाति के वैश्य प्रसिद्ध साह विहारीलालजी के पौन थे । ये संवत् १९१३ में श्रीवृंदावन चले गए और वहाँ गोस्वामी राधागोविंदजी के शिष्य हो गए । संवत् १९१७ में इन्होंने वृंदावन में प्रसिद्ध साहजी का मंदिर बनवाना प्रारंभ किया, जिसकी स्थापना सं० १९२५ में हुई । सं० १९३० कार्तिक शु०२ को इनका स्वर्गवास हुश्रा । इन्होंने कई बड़े-बड़े ग्रंथ निर्मित किए, जिनका वर्णन नीचे किया जायगा । उनमें विषय प्रायः एक ही है। सबमें श्रीकृष्णचंद्र का अष्टयाम या समयप्रबध विशेषतया वर्णित है। समय प्रबंध व नष्टयाम में यह भेद है कि अष्टयाम में श्रीकृष्णचंद्रजी के हर घड़ी और पहर का श्रृंगारपूर्ण वर्णन है और समयप्रबंध में दिन की पृथक-पृथक पूजा और उपासनाओं का सविस्तर कथन है । इसके अतिरिक्त श्रीकृष्णाजी की विविध लीलाओं का वर्णन भी इन्होंने विस्तारपूर्वक किया है। श्रीसूरदासजी के व इन लोगों के कथनों में यह भेद है कि सूर ने सूक्ष्मतया समस्त भागवत की और मुख्यतया पूर्वार्द्ध दशम स्कंध की कथाएँ कही हैं, जिससे उनके ग्रंथ में विविध विषय या गए हैं, परंतु इन लोगों ने सिवा ब्रज-वर्णन के और कुछ भी नहीं कहा, और उसमें भी कृष्ण की बाल-लीला इत्यादि की कथाएँ छोड़ दी है। इस कारण इनके कथनों में सिवा प्रेमालाप,