पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१२८

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परिवर्तन-प्रकरण १०५६ इनकी पितामही लखनऊ के वाजपेयियों के घराने की थीं । उनके मातामह भट्टाचार्य पाँड़े थे जो अवध के बादशाह के यहाँ से इलाहाबाद प्रांत के शासक नियत थे। जब वह प्रांत अँगरेज़ों को मिल गया तब वह लखनऊ में रहने लगे। उनके दोनों पुत्र बड़े विख्यात चकलेदार थे। इनके यहाँ करोड़ों की संपत्ति थी। कोई अन्य उत्तराधिकारी न होने से लेखराज की पितामही इस संपत्ति की उत्तराधिकारिणी हुई। इनका महल वहीं था जहाँ अब विक्टोरिया पार्क बना हुआ है। समय पाकर यह सब धन लेखराज के हाथ आया और ये महाशय सुखपूर्वक लखनऊ में रहते रहे । संवत् १६१४ वाले सिपाही विद्रोह की गड़बड़ में इन्हें लखनऊ से बाहरी ज़िमी- दारी गंधौली जिला सीतापुर में सब संपत्ति छोड़ कुछ दिनों को भाग जाना पड़ा । दैववश विद्रोहियों ने इनका महल खोदकर सब ख़ज़ाना तथा माल असबाब रक्षकों के रहते हुए भी लूट लिया । इनके हाथ जो कुछ धन ये ले गए थे वही लगा और गधौली तथा सिंहपुर की जिमींदारी इनके पास रह गई। फिर भी ये महाशय ऐसे शांतचित्त और संतोषी थे कि कभी यह इस आपत्ति का नाम भी नहीं लेते थे। इनको कविता का सदैव शौक रहा और बहुत प्रकार के उत्तम पदार्थ अपने हाथ से ये बना सकते थे। इनके यहाँ कविगण प्रायः आया करते थे । ये तथा इनके अनुज बनवारीलाल काव्य के पूर्ण ज्ञाता थे। इन्होंने रसरत्नाकर (नायिकाभेद), राधानखशिख, गंगा- भूषण और लघुभूषण-नामक चार ग्रंथ बनाए थे । गंगाभूषण में इन्होंने गंगाजी की स्तुति में ही सब अलंकार निकाले हैं । लघु- भूषण में बरवै छंदों द्वारा अलंकारों के लक्षण तथा उदाहरण कहे गए हैं। इन ग्रंथों के अतिरिक्त स्फुट छंद बहुत हैं। इनका शरीरपात काशीजी में मणिकर्णिका घाट पर शिवरात्र के दिन संवत् १९४८ में हुा । इनके लालविहारी ( द्वजराज कवि ) जुगुलकिशोर (ब्रजराज