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मिश्रबंधु-विनोद

उत्पत्ति एवं विवाह तक की कथा वर्णित तृतीय खंड में रावण की उत्पत्ति और विजय तथा राम की उत्पत्ति से लेकर राम-राज्य तक का वर्णन है। प्रत्येक खंड के अंत में इस कवि ने उस खंड के छंदों की संख्या कह दी है । यह ग्रंथ विशेषतया दोहा-चौपाइयों में कहा गया है। इसमें यत्र-वत्र और छंद भी हैं । रघुनाथदास ने बंदना में गोस्वामी तुलसीदास का अनुकरण किया है, यहाँ तक कि कई स्थानों पर गोस्वामीजी के भाव भी विश्रामसागर में आ गए हैं । इस ग्रंथ के पढ़ने से जान पड़ता है कि रघुनाथदासजो पूरे भक्त थे, और उन्होंने भक्तों के विनोदार्थ यह ग्रंथ बनाया था। इसकी रचना ब्रजविलास और रामाश्वमेध के समान है । इन तीनों ग्रंथों का रचनाचमत्कार साधारण है, परंतु इनमें कथाएँ रोचक वर्णित हैं । इस ग्रंथ के उदा-हरणस्वरूप हम कुछ छंद नीचे लिखते हैं-

पैहैं सुख संपति यश पावन ; हैहैं हरि हरि जन मन भावन । कल्पित ग्रंथ कहै जो कोऊ ; याचौं ताहि जोरि कर दोऊ । रामकथा शुभ चिंतामनि-सी ; दायक सकल पदारथ जन-सी। अभिमत फलप्रद देव धेनु-सी ; स्वच्छकरन गुरुचरन-रेनु-सी । हरिभय हरणि बिभाव सुता-सी ; दुखद अविद्या तूल हुता-सी। धर्म कर्म बर बीज रसा-सी ; सुमति बढ़ावन सुख सुदसा-सी। इस महात्मा ने संस्कृत के ग्रंथों की बहुत-सी कथाएँ लिखी हैं और कुछ श्लोक भी बनाए हैं। इससे विदित होता है कि ये संस्कृत के जाननेवाले थे । इनकी भाषा गोस्वामी तुलसीदास की भाषा से मिलती-जुलती है और उत्तमता में ब्रजविलास के समान है। इनके वर्णन साधारण उत्तमता के हैं। (१८१९ ) लेखराज (नंदकिशोर मिश्र) ये महाशय भगवंतनगर के मिश्र संवत् १८८८ में उत्पन्न हुए थे।