पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१२४

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परिवर्तन-प्रकरण उदय और अस्त, स्वयंवोध उर्दू, अँगरेज़ी अपरों के सीसने का उपाय, बच्चों का इनाम, राजा भोज का सपना और चीरसिंह का वृत्तांत । इन ग्रंथों में से कई संग्रह-मात्र है, और अधिकतर राजा साहय के ही बनाए हैं। राजा साहय की भाषा वर्तमान भाषा से बहुत मिलती है, केवल यह साधारण बोल-चाल की भोर अधिक मुकती है, और उसमें कठिन संस्कृत अथवा फारसी के शब्द नहीं है । उसमें उर्दू शब्दों का भी कुछ प्राधिक्य है । इन्होंने कुछ छंद भी बनाए हैं, पर विशेष. सया गद्य ही लिखा है। ये महाशय जैनधर्मावलंबी थे। (१८१७) गुलावसिंहजी कविराव (गुलाब) इनका जन्म सं० १८८७ में बूंदी में हुया । ये संस्कृत के यदे विद्वान् तथा टिंगल, प्राकृत और भाषा के अच्छे ज्ञाता, यदी दरवार के राजकवि एवं कामदार थे। ये बंदी के स्टेट कौसिन और वाण्टर-कृत राजपुत्रहितकारिणी सभा के सभासद तथा रजिस्टरी के हाकिम थे। पाप भाषा की कविता सरस और मधुर करते थे। इनके रचित ये ग्रंथ है- गुलाघकोप , नामचंद्रिका २ नामसिंधुकोप ३ व्यंग्याय- चंद्रिका ४ वृहद्व्यंग्यायचंद्रिका ५ भूपणचंद्रिका ६ लक्षितकौमुदी ७ नीतिसिंधु क नीतिमंजरी नीतिचंद्र० काव्यनियम ११ यनिता- भूपण १२ वनिताभूपण १३ चिंतातंत्र । मूशितफ १६ कृष्य- चरित्र १६ श्रादित्यहृदय १७ कृष्णजीना 15 रामलीला ६ सुलो- चनालीला २० विनीपणलीमा २६ लाणकौमुदी २२ कृष्णाचरित्र में गोलोक खंठ, वृदावन खंठ, मधुरा-वंद, द्वारिफा-नट, विज्ञान-पंट और सूची २३ तथा ६ छोटे-छोटे भ्रष्टक तथा पायस और प्रेमपचीसी इत्यादि । इनकी कविता लरस तथा मनोहर होती थी। इनकी गणना पनाकर की श्रेणी में की जाती है। संवत् १९५% में इनका देहांत हुघा। उदाहरण-