पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१२३

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मिनबंधु-विनोद है। इनका निन्न-लिखित अन्योक्ति का छंद परम प्रसिद्ध है- सुनिए बिटप प्रभु सुमन तिहारे संग, राखिही हमैं तो सोभा रावरी बढ़ाय हैं। तजिहाँ हरखि कै तौ बिलगु न मानें कछु, जहाँ-जहाँ जैहैं तहाँ दुनो जसु छाय हैं। सुरन चढ़ेंगे नर सिरन चदेंगे बर, सुकवि अनीस हाट-बाट मैं बिकाय हैं; देस मैं रहेंगे परदेस में रहेंगे, काहू बेस मैं रहेंगे तऊ रावरे कहाय हैं। (१८१६) शिवप्रसाद राजा सितारे हिंद, काशी ये महाशय संवत् १८८० में उत्पन्न हुए थे और १९५२ में इनका स्वर्गवास हुआ । इन्होंने सिक्ख-युद्ध के समय अँगरेज़ों की सहायता जी तोड़कर की थी। इस पर आप शिक्षा-विभाग के सरकारी उच्च कर्मचारी अर्थात् इंस्पेक्टर नियत हुए, और इन्हें राजा तथा सी. एस. आई. की उपाधियाँ मिलीं। ये महाशय हिंदी के बड़े ही पक्षपाती थे, विशेषतया उर्दू और संस्कृत मिश्रिस खिचड़ी हिंदी के। इसी खिचड़ी हिंदी का उन्नत स्वरूप खड़ी बोली है। इन्होंने अनेकानेक पाब्य-पुस्तकें लिखों और शिक्षा विभाग में हिंदी को स्थिर रखकर उसका बड़ा ही उपकार किया। उस समय यह विचार उठा था कि शिक्षा विभाग से हिंदी उठा ही दी जाय । ऐसे अवसर पर राजा साहब के ही परिश्रम से वह रुक गई । इनकी रची हुई पुस्तकों को नामावली यह है- वर्णमाला, बालबोध, विद्यांकुर, बामामनरंजन, हिंदी-व्याकरण, भूगोलहस्तामलक, छोटा हस्तामलक भूगोल, इतिहास-तिमिर-नाशक, गुटका, मानवधर्मसार, सैंडफोर्ड ऐड मारटिस स्टोरी, सिक्खों का