पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१२२

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परिवर्तन-प्रकरण १०५३ मुगल पठान सेख सैयद असेप धरि, श्रावत इजारन बजार कैसे चौधरी । पंदित प्रवीन कह मानसिंह भूपति, कमान पै अरोपत यों तीखो तीर कैवरी; सिंघ के ससेटे गज याज के लपटें लवा, तैसे भूलै भूतल चकलन की चौकरी ॥१॥ पायो रितुराज श्राजु देखत बनेरी पानी, छायो महामोद सो प्रमोद वनभूमि-भूमि । नाचत मयूर मन मुदित मयूरनि फो, मधुर मनोज सुस गरी मुग्ल चूमि-चूमि । पंदित प्रधीन मधुलंपट मधुप पुंज, कुंजनि मैं मंजरी को चाखें रस घूमि-धूमि ; हेली पौन प्रेरित नवेली-मी दुमन यली, फैली फूल दोलन मैं मुलि रही भूमि-भूमि ॥२॥ सानी शिवराज की न मानी महाराज भयो, दानी रददेय सो न सूरत सितारा लों; दाना मवलाना रूम माहिवी मैं बयर ली, थाफिल अकबर लौं यकस युखारा नौ । पंदित प्रमीन खानखाना लौं नचाय, नवसेरचा ली श्रादिल दराजदिन्न दारा ली। विक्रम समान मानसिंह सम सांची फहीं, प्राची दिसि भूप हैन पारावार धारा ली ॥ ३ ॥ नाम--(१८१५) अनीस। रचनाकाल-१६ विवरण-इनके इंद दिग्विजय भूषण में है। कविता मरम और प्रशंसनीय है। इनकी गणना तोप पवि की श्रेणी में