पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१२१

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१०५२ __ मिश्रबंधु-विनोद बीर बली सरदार जहाँ तहँ जोति बिजै नित नूतन छाजै; दुर्ग कठोर सुडौर जहाँ सहँ भूपति संग सो नाहर गाजै । पालै प्रजाहि महीपै जहाँ तह संपति श्रीपति-धाम-सी राजै; है चतुरंग चमू असवार पँवार तहाँ छिति छन बिराजै । नाम--(१८१३) बलदेवसिंह क्षत्रिय, अवध । रचनाकाल-१९०७ । विवरण-ये द्विजदेव महाराजा मानसिंह और राजा माधवसिंह अमेठी के कवितागुरु थे। इनकी कविता तोप की श्रेणी की है, जो बड़ी उत्तम, मनोहर, सानुप्रास एवं यमक युक्त है- चंदन चमेली चोप चौसर चढ़ाय चारु, मधु मदनारे सारे न्यारे रस कारे हैं; सुगति समीर मद स्वेद मकरंद बुंद, बसन पराग सों सुगंध गंध धारे हैं। बारन बिहीन सुनि मंजुल मलिंद धुनि, बलदेव कैसे पिकवारे लाज हारे हैं; फूलमालवारे रति बल्लरी पसारे देखौ, कंत मतवारे के बसंत मसवारे हैं । (१८१४) ( पंडित प्रबीन ) पं० ठाकुरप्रसाद मिश्र ये महाशय अवध प्रदेशांतर्गत पयासी के निवासी ब्राह्मण थे और महाराजा मानसिंह अयोध्या-नरेश के यहाँ रहते थे। इनकी कविता ज़ोरदार और सरस है । हम इनकी गणना तोप कवि की श्रेणी में करते हैं । हमने इनका कोई ग्रंथ नहीं देखा । [द्वि० ० रि० ] से इनके सारसंग्रह-नामक ग्रंथ का पता चलता है। उदाहरण-- भाजे भुजदंड के प्रचंड चोट बाजे बीर, सुंदरी समेत सेवें मंदर की कंदरी;