पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१२०

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परिवर्तन-प्रकरण बारिका विहार बाग वीथिन विनोद बाल, विपिन बितोकिए यसंत की बहार है ॥१॥ (१८११) बिरंजीकुँवरि ये गाँव गढ़वाड़ ज़िले जमनपूर के दुर्गवंशी ठाकुर साहबदीन की धर्मपली थीं । इन्होंने संवत् १९०५ में सतीविलास [खोज १६०४]. नामक ग्रंथ सती स्त्रियों के विषय में बनाया, जिससे विदित होता है कि इन्होंने उसी भाषा में कविता की है, जिसमें गोस्वामी तुलसीदास ने की। इनकी रचना प्रायः दोहा-चौपाइयों में है। सवैया श्रादि में इन्होंने प्रजभापा भी लिखी है । इनकी कविता का चमत्कार साधारण है और हम इन्हें मधुसूदनदासजी की श्रेणी में रखते हैं । इनका एक सवैया नीचे लिखा जाता है- होय मलीन कुरूप भयावनि जाहि निहारि धिनात हैं लोग सोऊ भजे पति के पदपंकज जाय करै सति लोक मैं मोग। ताहि सराहत हैं विधि शेप महेश बखान बिसारि के जोग; याते विरंजि बिचारि फहै पति के पद की तिय किंकरि हो । (१८१२) जानकीप्रसाद ये महाशय भवानीप्रसाद के पुत्र पवार ठाकुर जिला रायबरेली के निवासी थे। शिवसिंहजी ने इन्हें विधमान लिखा है। इनका "नीति- विलास" नामक ग्रंथ हमने देखा, जो सं० १६०६ का छपा हुआ है। इसमें अनेक छंदों में नीति वर्णित है । इसमें ४६ पृट और ३६. छंद है । इस ग्रंथ की कविता-घटा साधारण है । शिवसिंदजी ने इनके रघुवीरध्यानावली, रामनवरल, भगवतीविनय, रामनिवास रामायण और रामानंदविहार-नामक ग्रंय और लिखे है। इन्होंने उर्दू में एक हिंदुस्तान की तारीन भी मिली है। हम इनको साधा- रण श्रेणी का कवि समझते हैं। उदाहरणार्य एफ एंद नीचे