पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/११९

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१०५० मिश्रवंधु-विनोद है । इनके भाव और भाषा दोनों प्रशस्त हैं। इनकी कान्यपटुता टीकाओं से विदित होती है । वर्तमानकाल में इन्होंने अपनी कविता पुराने सत्कवियों में मिला दी है । इनके श्रृंगारसंग्रह में घनानंद के करीब १५० बाँके छंद मिलेंगे । इन्होंने पाश्लील विषय के भी दो-चार छंद कहे हैं। हम इनकी गणना पद्माकर की श्रेणी में करेंगे। उदाहरण- वा दिन ते निकसो न बहोरि कै जा दिन भागिदै अंदर पैठो, हॉकत हूँकत ताकत है मन माखत मार मरोर उमैठो। पीर सही न कहीं तुम सों सरदार विचारत चार कुटैठो; ना कुच कंचुकी छोरौ लला कुच कंदर अंदर बंदर बैठो। मनि मंदिर चंदमुखी चित्तवै हित मंजुल मोद मवासिन को; कमनीय करोरिन काम कला करि थामि रही पिय पासिन को।। सरदार चहूँ दिसि छाय रहे सब छंद छरा रस रासिन को; मन मंद उसासन लेन लगी मुख देखि उदास खवासिन को। (१८१०) पूरनमल भाट उपनाम पूरन इनका जन्म संवत् १८७८ के लगभग हुआ । ये दरबार अलवर के कवि थे । कविता अच्छी की है। इनके पौत्र जयदेवजी अभी अलवर-दरबार में हैं। इनकी कविता साधारण है। उदाहरण---- ललित लवंग लवलीन मलयाचल की, ___ मंजु मृदु मारुत मनोज सुखसार है। मौलसिरी मालती सुमाधवी रसाल मौर, मौरन पै गुंजत मलिंदन को भार है । कोकिल कलाप फल कोमल कुलाहल के, पूरन प्रविच्छ कुहू कुहू किलकार है ;