पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/११८

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१०४६ परिवर्तन-प्रकरण १८७६ में जन्मे थे । स्वामी नारायणधर्म के साधु श्रीदेवानंदजी से कविता पढ़ी। उसके बाद अहमदाबाद में इनके गुरु ने अपने मंदिर में संस्कृत पढ़ाने के लिये रख दिया। अहमदाबाद के जज साहय अलेक्जेंडर किवला के फारचर्ड साहब को इस देश की कविता जानने की इच्छा हुई । भोलानाथ साराभाई के ज़रिए से दनपतिराय को साहय ने रख लिया और इनकी सहायता से साहब ने गुज- रात देश का इतिहास लिखना शुरू किया और 'राशमाला' नाम से छपाकर प्रकट किया और ईस्वी सन् १८८ ई० में अहमदाबाद में 'गुजरात वर्नाक्यूलर मोसायटी' की स्थापना कर कवि को उनका सेक्रेटरी बनाया और हिंदी भाषा की कविता छुड़ाके अपनी देश. भापा (गुजराती भाषा) में कविता करने को कहा। तब से ये अपनी भाषा में कविता करने लगे। दलपतिराय का 'काव्यसंग्रह' नाम से वृहत् ग्रंथ छपाया है। इन्हीं महाशय ने स्वामी नारायण के मूलपुरुप सहजानंद स्वामी के नाम से उनका 'पुरुषोत्तममाहात्म्य' नाम का ग्रंय बनाया है। तथा दूसरा यजरामपूर के महाराजा के लिये 'श्रवणाख्यान' नाम का ग्रंथ हिंदी में अच्छा बनाया है। (१८०९) सरदार ये महाशय महाराज ईश्वरीप्रसाद नारायणसिंह फाशी-नरेश के यहाँ थे। इनका कविताफाल संवत् १९०२ से १६३० पर्यंत रक्षा। इन्होंने कविप्रिया, रसिकप्रिया [खोज १०४ ],सूर के ट्यूट और विहारोसतसई पर परमोत्तम टीफाएँ गद्य में लिखी है। पद्य में इन्होंने साहित्यसरसी, व्यंग्यविलास (81), पस्नु, हनुमतभूपण, तुलसीभूपण, मानसभूपण, गारसंग्रह(१६०९), रामरनरवार, रामरसत्र, [खोज १६०४ ] साहित्यसुधार (१०२ ) चौर रामलीलाप्रकाश [ खोज १६०३ ] (१९०६) नामक अद्भुत ग्रंथ यनाए हैं । इनकी रचना में एक अलौकिक स्वाद मिलता