पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/११३

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१०४४ मिश्रबंधु-विनोद च्याघ्रदेव से वर्तमान महाराजाधिराज श्रीन्यंकटरमण रामानुजप्रसाद- सिंहजू देव बहादुर तक ३२ पुसे हुई हैं। ये लोग बघेल कहलाते हैं । ब्रह्मचोलक से अब तक ११२१ पीढ़ियाँ हुई हैं। महाराजा व्याघ्रदेव का जन्म संवत् ६०६ में हुआ और श्राप संवत् ६३१ में गद्दी पर बैठे। इनके उत्पन्न होने पर ज्योतिषियों ने इनके प्रतिकूल बहुत कुछ कहा था, और ये जंगल में छोड़ दिए गए थे। कहते हैं कि वहाँ यह शिशु एक बाधिनी का स्तन पान करता पाया गया था। इसी से यह बघेला कहलाया । वास्तव में यह नाम बाघेल ग्राम से निकला है, जो रियासत बरोदा में है, जहाँ से यह वंश बघेलखंड गया था । व्याघ्रदेव ने अपना पैतृक राज्य अपने भाई सुखदेव को देकर कठेर देश को जीता, जो इनके नाम पर बघेलखंड कहलाने लगा। कहते हैं कि यहाँ के राजा रामचंद्र ने एक दिन में प्रसिद्ध गायक तानसेन को दस फरोड़ रुपए दिए थे। महाराजा विक्रमादित्य ने बांधवगढ़ छोड़कर रीवाँ को राजधानी बनाया। महाराजा जयसिंह जू देव (नंबर १९३२) का जन्म संवत् १८२ में हुश्रा, और सं० १८६५ में श्राप गद्दी पर बैठे । संवत् १८६०. वाली बसीन की संधि द्वारा पेशवा ने बघेलखंड का वह भाग अँग- रेजों को दिया जो बाँदा के नवाब अलीबहादुर ने जीता था। अँगरेज़ों ने कहा कि इस संधि द्वारा रीवा-राज्य भी उन्हें मिल गया. था, किंतु उन्हें यह दावा छोड़ना पड़ा और सं० १८६६ से दो वर्ष तक तीन संधियाँ अँगरेज़ों से हुई, जिनसे रीवा-राज्य स्थिर हुआ। महाराजा जयसिंह ने सं० १८६६ में नामछोड़ राज्य के प्रायः सब अधिकार अपने पुत्र विश्वनाथसिंह को दे दिए । राज्य में पहली अदा. लत (धर्मसभा) सं० १८८४ में कचहरी मिताक्षरा के नाम से स्थापित हुई । उसका मान बढ़ाने को एक बार स्वयं विश्वनाथसिंहजू