पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/११०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परिवर्तन प्रकरण १०४७ बनाए हुए पीपाप्रकाश, ज्योतिपप्रकाश और बरवै नखशिख ग्रंथ भी हैं । इनमें से वाग्विलास और वरवै नखशिख हमारे पास प्रस्तुत हैं। बरवै नायिकाभेद भी अच्छा है । इसमें 8 छंदों में नायिकाभेद का संक्षेप में वर्णन है। पंडित अंबिकादत्त व्यास ने लिखा है कि ये महाशय एक छंदोग्रंथ भी लिखते थे, परंतु उसका कहीं पता नहीं है। इन्होंने सब विषयों पर अच्छी कविता की है। इनका पट्ऋतु तो बहुत ही प्रशंसनीय है। ये अपने पितामह गकुर की भाँति श्राशिक न थे, और इनकी कविता में वैसी तल्लोनता नहीं देख पड़ती, परंतु इनके सवैया अकुर की भाँति प्रसिद्ध हैं, एवं बहुत लोग इन्हें वैसा ही श्रादर देते हैं। इनको भाषा ब्रजभाषा है और वह सराहनीय है। ये महाशय अपने ग्रंथों में टीका के ढंग पर वार्ताओं में शंकाएँ लिख- लिखकर उनका समाधान भी करते गए हैं। इनके ग्रंथों में चमरका- रिक छंद भी पाए जाते हैं, परंतु उनकी बहुतायत नहीं है। इनकी कविता में प्रशस्त छंदों की अपेक्षा साधारण छंद बहुत अधिक हैं । हम इनकी गणना तोप कवि की श्रेणी में करते हैं । उदाहरणार्य इनके कुछ छंद नीचे लिखे जाते हैं- उनए धन देखि रहैं उनए दुनए से लताद्रुम फूलो करें; सुनि सेवक मत्त मयूरन के सुर दादुर क अनुकूजो करें। तर दर दवि दामिनि दीहायही मन माह कबूलो करें; मनभावती के सँग मैनमई घनस्याम सबै निसि झूलो करें ॥ ॥ दधि पाछत-पाछत भाल मैं देखि गए अंग के रंग छीन से है। दुख औचक वारो कहे न बने विधु सेवक सौहे अरीन से है। मृगराज के दाये विधे बनसी के विचारे मले मृगमीन से है। हरि श्राए विदा को भट्ट के तहीं भरि पाए दोऊ दृग दीन से है॥२॥ बंसी बजावत यानि कढ़े घनिता घनी देखन को अनुरागौं ; हौं हूँ अभाग भरी डगरी मगरी गिरे चौंकि सबै दरि भागीं।