पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/१०९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०४०
मिश्रबंधु-विनोद

जीवनचरित्र और उपर्युक्त वंश-वर्णन लिखा है। स्वयं सेवक ने भी अपने कुटुंब का वर्णन निन्न छंद द्वारा किया है—

श्रीऋषिनाथ को हौं मैं पनाती औ नाती हौं श्री कवि ठाकुर केरो;
श्रीधनीराम को पूत मैं सेवक शंकर को लघु बंधु ज्यों चेरो।
मान को बाप बबा कसिया को चचा मुरलीधर कृष्ण हू हेरो;
अश्विनी मैं घर काशिका मैं हरिशंकर भूपति रच्छक मेरो।

सेवक उपर्युक्त जानकीप्रसाद के पौत्र हरिशंकर के यहाँ रहते थे। सो इन आश्रयदाता एवं आश्रयी, दोनों के कुंटुबों की स्थिरचित्तता प्रशंसनीय है कि जिन्होंने चार पुश्तों तक अपना संबंध निबाह दिया। सेवक महाशय हरिशंकरजी को छोड़कर किसी भी अन्य राजा-महा- राजा के यहाँ नहीं जाते थे। यहाँ तक कि महाराजा काशी-नरेश वहीं रहते थे, परंतु इस कुटुंब ने उनसे आश्रयदाता से भी संबंध कभी नहीं जोड़ा। सेवक का यह भी प्रण था कि काशी में चाहे जितना बड़ा महाराज भी आवे, परंतु ये उससे मिलने नहीं जाते थे, और बाबू हरिशंकरजी के ही आश्रय से संतुष्ट रहते थे। एक बार काशी के प्रसिद्ध ऋषि स्वामी विशुद्धानंदजी सरस्वती ने इनके ऊपर कृपा करके अपने शिष्य महाराजा कश्मीर के यहाँ इन्हें ले जाने को कहा। स्वामीजी कहते थे कि सेवक की बिदाई वहाँ पच्चीस हज़ार रुपए से कम की न होगी, परंतु सेवक ने अपने बाबू साहब के रहते वहाँ जाना उचित न समझा। धन्य है, इस संतोष को।

इन्होंने वाग्विलास-नामक नायिका भेद का एक बड़ा ग्रंथ बनाया है, जिसमें १९८ पृष्ठ हैं। इसमें नृपयश, रस-रूप, भावभेद और उसके अंतर्गत नायिकाभेद, नायकभेद, सखी, दूती, षट्ऋतु, अनुभाव और दश दशाओं का वर्णन किया गया है। सेवक ने नायिका- भेद की भाँति बड़े विस्तार-पूर्वक नायकभेद भी कहा है, और उसमें भी लगभग उतने ही भेद लिखे हैं, जिसने कि नायिकाभेद में। इनके