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( १७९९ ) माधव रीवाँ-निवासी

इन्होंने आदिरामायण-नामक ग्रंथ संवत् १९०० के लगभग रीवाँ- नरेश महाराज विश्वनाथसिंह की आज्ञानुसार बनाया। माधवजी ने अपने को काशीराम का पुत्र और गंगाप्रसाद का नाती कहा है। इनका ग्रंथ छतरपुर में है। इसमें ३५९ बड़े पृष्ठ हैं। यह ग्रंथ पद्म- पुराण के आधार पर बना है। इसमें ब्रह्मा और काकभुशुंढ का संवाद है। ग्रंथ सुंदर है। ये छत्र कवि की श्रेणी में हैं।

उदाहरण―

अति सुंदर नैन सुरंग रँगे मद झूमत नीके सनींद लसैं;
अँगिरात जम्हात औ तोरत गात दोऊ झुकि जात निहारि हसैं।
अरुझी नथ कुंडल मालनि मैं मुकता मनि फूलनि औलि खसैं;
लघु ब्रह्म सुखौ तिनको दरसात लुभात जे प्रात के ध्यान रसैं।

( १८०० ) क़ासिमशाह

इन्होंने हंसजवाहिर ग्रंथ संवत् १९०० के लगभग बनाया। आप दरियाबाद, ज़िला बारहवंकी के निवासी थे। ग्रंथ की वंदना जायसी-कृत पद्मावत की भाँति उठी है। काशी-नागरीप्रचारिणी सभा को इसकी अपूर्ण प्रति खोज (१९०२) में प्राप्त हुई है, जिसमें फ़ुल्सकैप आकार के २०० पृष्ठ हैं। ग्रंथ दोहा-चौपाइयों में कहा गया है, जिसमें रचना-चमत्कार मधुसूदनदास की श्रेणी का है। इसमें एक प्रेम-कहानी वर्णित है।

( १८०१ ) जानकीचरण उपनाम प्रिया सखी

इन्होंने 'श्रीरामरत्नमंजरी'-नामक ११५ पृष्ठों का एक ग्रंथ रचा, जो छतरपुर में है। इसमें कई छंद हैं, पर विशेषतया दोहे हैं। इसमें साधारण कविता में राम का वर्णन है। इनका कविताकाल जाँच से संवत् १९०० जान पड़ा। इन्होंने जुगलमंजरी और भगवानामृत- कादंबिनी-नामक दो ग्रंथ और रचे थे, जो छतरपूर में हैं। इनमें चतुर्थ