पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/९७

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पूर्धान्तकृत मकर । और इसी कारण इनकी रचना अधिक होकप्रिय है। इनकी | भोपा अज्ञमाण है, परन्तु उसमें अन्य मापाप के बहुत से शब्द मिल गये हैं। इनकी सपर्मियता र यतन्त्रता माननीय मीर प्राणज्य तथा जवाजता भी दर्शनीय हैं। उधम उम्दी की मात्रा इनकी रचना में घिरेप से पाई जाती है। इनका विप बन । दिलबर में निलेगर और उससे भी बृहत् यम देने के यास्ते भूपग्रन्थावली की भूमिका देंचनी चाहिए। इनकी रायना नवरत में चित्रे नम्बर पर है। उदय । अझै भूवनाथ मु माल लेत हरखत भूतन अार लैत अजE. उछाद है। भुपन भनत अर्जी दें वरचालन के कारे कुन परी कठिन कराई हैं। लिइ सिवराज सलहे के समीप पैले किये। कतलाम बिछी दुद की सिपाई है। नदी रनमल हैलन रुधिर अझै प्रज्ञा रवि मदल देम की रद्द है ॥ पपी मानसर प्रादि गगन तलाच लागे | जिनके पन में अकध जुत्र गम है । भूपन या साज्यों जगट सिंचाई हे देय चकचाई के बनाये राज़ के | वन अबव कलिकान आसमान में हैं। ति दिसाम अ इ मे। अथ फे।