पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/७२

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विपिनाथ । माहुरग्य। पारि विद्दार घर वारन के घेरिये पैर धारिच पिरधी इन यमाज़ पी। पवि मतिराम पन्त जरबन्द्र ज्ञान दूरि भई हिम्मत हुरद विरमज्ञ श्री ॥ | मसरन सरन चरन पी सन ही ज्या धानन्धु रिज़ नाम में इन्न । घाये यतै मान अति अनुर उताल मिरी बीच झज्ञराज़ गरज गजराज ॥ सूनि उमेहि दि मुलं दक्षि फा चम् सुभट समून सिधा परी इमति है। ६ मतिराम साद चर्कियो सगर में का ६ न धिम्मति द्दिय में इति है। | सत्रुसाल नन्द के प्रताप की रद्दरि सय गरी गनीम वरन का दहति है। पति पतसा की इज्जत उमण्यन की राष् शैया राय भावसिद्द की रद्दति है। यह अन्य मनाने के पीछे जान पड़ता है कि मतिराम का सरगन्ध धू ही दरबार से टूट गया, क्योंकि उन्हेंाने अपने क्षेप अप छन्द सार पि गह, सादिपसार झेर रसराज हैं दीनदेश के नाम नहीं घमाये । इन रादिपसार र ल्क्षा गएर अन्य मामी ६ देने में नहीं आये, परन्तु चे में मिले हैं। इन्दार