पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/७०

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५८८] मिश्र धुदि । [१० १०० पता धराया, ते मद्देन । ई मी नि पो माई न बनाता । मंनी मान्यज्ञान पयि ६, फ्यो कविमट्टी में इनका नाम तू है, यहाँ तक रि कुछ रोग इन्हें यही ऊँचे दूजे का इ मानने ६इन यी कविता सस पर मधुर होती थीं। इस ई तात्रे व की श्रेणी का कवि समझनै ६ । उदाहरवा ! अलि है। और गर्दै जमुना जड़ में से कद्दा फद्दा घर विपत्ति परी। घराय के कारी घटा उनई इतने ही मैं गागरि सास धरी । रपयो पग घाट च ये न गयेा ववि मन है के पहाड़ गिरी। धिरजीपटु नन्द वारी अरी गर्दै वाई गरीब नै ठादी करी ॥ पैन का रस छोडि दिदा दिन ६ फते राति कहाँ बसती है! मद्धन अग सम्दारन का नित वन केसर ले घसती है ॥ छाती विद्वारि निहारि क्इ अपनी गया की तनी फुसी ही। तो हन । अचरा उघदेश कहे। मी तुन ताकि कहा हँसती है ॥२॥ महनजी के नाम से हमने कुछ पद भरे सुने हैं, जैसे, "अरे हां हां , अरे हा हाँ हाँ, मक्राइन कु इल कानन माँ । इम थापा राम जनकपुर म ।। पर अचइयहीं यई कर्पिता किसी प्रकार ही मनुष्य की है, पर मड़ना ऐसी गंवारी देड चैसचारे की चेार्ड में भरा का कविता करने बैठते। इनके बन्धये हुए सुरक्षाची, रसास, जनक्रपचोली, जानकी जू का गिद् र नेनपचासा नामक अन्य गाज में - लिखे हैं। इन्हेंाने पुरदरमाया १७६६ में रची।