पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/६९

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गूगलंत प्रकरए । ४७ भाषा में है । अतः इस कवि का भी नाम प्राचीन समय के गद्म- जैसफा में आता है। उदाइरः । अथ चन्दन गुरु वैघ कृ नमस्कार । गोविन्द आफू नमस्कार। सर्व परकार के सथ साध अपि मुले जन लव ६ नमस्कार । अहा तुम राख्न सपि दैसी बुधि है जो बुधि करि; या ग्रन्थ की पारीफ भरपा रथ चना कारये । सरच सुन्न की फूपा से समस्त कारज सिधि हैन । इन्द्र ने देहे भी कते हैं। सगदिश सुरसे प्राय सब च्यार घर फुल सच्च । इः सुमर दित सु व कारज चे वद्य ॥ केटि है। किंत कीजिये ज़ा कीजें सत संग। सत सगत सुमरय बिना च न जिउ के रंग ॥ १३५८) मारीनंदन मिश्न उपनाम मंडन। यद्द करे जैतपुर कुँदेलखंड में सवन् १६९० में अत्पन्न हुआ था। इन के न पन्थ सुनें जाते हैं पर इमारे देखने में एक भी नहीं पाया, यद्यपि इन फे फुट फसित बहुतेरे सुने और देने गये हैं। इन विषय में यह किंवदती कुछ कुछ प्रसिद्ध है कि ये भूषण मे मति- राम इत्यादि के भाई थे र यद् यात बिलकुल अशुद्ध है ! यह वैदे- लपड़ी थे और भूग्ण इत्यादि जिला कानपुर के रहने वाळे । सबै भूपण के बासस्यान सिकरपुर (जिला कानपुर में इस का