पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/६२७

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११३६ द्विय ] शव-कातिक ङ्गकरण । हम-(१५०८) द्विजनद । विवरग–निश श्रे गो । नाम-(१५०६) द्विजम् । विचर—निल थेगी। नाम-(१५१०) धरणीधर। अन्ध-सभामाश (प० २७०)। विवरण–शान भक्ति। नाम--(१५११) धरमपाः । मुन्ध-न्छ रे राया। नाम-(१५१२) धेथी। अन्ध-फुटकर फचिता । नाम-(१५१३) ध्यानदाल साधु। प्रत्य–(१) हरिदास, (२) बागलीला, (३) मानकला। नाम-(१५१६) नफुल। प्रन्थ–सालिश ।। विन१८ २१ ताची हात देते हैं। माम-(१५१५) नज़मी । नाम--(१५,१६} नरपछि । अन्य समरसिन्धु। --