पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५८८

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सूर्यमढ़ ] ऊतव्रत ५। अन्य महत लोग इस प्रकार प्रत किया, मैं हिन्दी कृतार्थ है। ज्ञापे ललित फैट कमनीय छाल, ३ अयन पीठ सित असित अल या तारीफ़ सफ़ की हुगुलानन्य नवीन वीन, पिकः।। पा इस प्रकार माल पर राजे झिजराज दुति ताई है। 'हाय' भनि मृदु सुन्नदान अनी मुनय द्धार': सेमै उर घर रति सुन्दर मित अमित मावत जाते । ति विपरीत

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कथन ६५०, (३) रामारीरस। बूंदी-निवासी सूर्य मल्ल क लसन गञ्ज । नामक भारो झन्ध बनाया, चिन्न न भव ॥ समेत पद्द ४३६८ पृष्ठों में छुपा गृष्ठों का होगा। इसमें पिवयाच्या वाले हैं का वर्णन है मेर गैरू १ लांगतांग मारी कधन ६°ठ, (३) , f की आशा से घना है । १६ के कथनानुसार बद्र र मापा भने मात्र प्रकार से में विदिते 7 गगाना १८८९ से १९३० पघळ हेखि ६, मै इनके सनद हिन्दी में केई में में होने की आशा है । वंशभर यत्र तत्र पढने रोपित हुअर्थ माता । विभाग की अच्छी पूर्ति ६ है । प्रज्ञभाग लिपो है मेरे अनेर -