पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५६९

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प्रिपन्धुपा। [२० १८८० (१२३८) चन्द्रशेखर वाजयी । ये महाशय पीपल, १० जचत् १८५५ में मुअज्जमावावं जिला फतेहपुर में उत्पन्न हुए थे। इनके पिता का नाम मनोरम 1 पद भी अच्छे वय ६१ गरी वयित्ता में भूरी- मियासी माहापात्र नैदा कयि के शिष्य थे । २३ पर्ष की अवस्था में में महाशिये दरभंगा फी घार गये और ७ धरै तषः उस प्रान्त के राजा के यी है । उसके पीछे पशु जाधपूर-नरेश महापा मानसिंह में यहाँ ६ तक ६ मीर १६) नारित्र पाते हैं। फिर में पटियाला-नरेश महाराजा धर्मसिंह के नए गये और यापीयन प्रतिष्ठापूर्वक इन तया इनके पुत्र महाराज द्धिसिए के यहां रहते हैं । इनका शरीर-पाव श्यत् १९५२ में हुआ । अनि पुष गरीजी अय तक पद्रियाले में पाते हैं और अच्छे अपि ६। उन्हीं के आधार पर यह जीवनी छापी गई हैं। चन्द्रशैभरजी ने हुम्मी, बिग्रेकलास, सिंचनाद, हरिभचिबिछासमशिन, पृन्दावनातक, गुपंचारिका, ज्योतिष का ताज़फ, र माधवीघसन्तु नामक ना अन्य धनाये । इनमें से अलिफबिनाद, नरशिप, चैौर अम्मीठ इसमें देने हैं। इनमें से इमरहठ पर इमने सन् १९९६ की सरस्वनी में समा- सुचना प्रकाशित की थी। उसमें हमने इनकी कविता के गुप* देर यथार दिया है। दम्मोरई में प्रधानतया पर काम हैं। जै पुगा इनकी रचना के घर काव्य में प्रकट हुए थे चद् सय गरि काय में भी वर्तमान ६, र नया वीर फ्पा शृगार कामी