पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५६६

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उत्तरकृत मनप्छ । साइत सजीले सित असित सु अर, जन सुचि अजुन अनूप कोच देरे हैं । साल भरे असते तील गुन साल ६६ । लाज की लगाम काम कारीगर फेरे हैं । घुघुट फरस ने फिरत फयित ले, चाल कबि लैकि अवलोकि मयें और ६ । मैर बारे मनके त्या पन मर था, त्यार चारै तश्न सुरंग दृग वैरे ६ ॥ मीति कुळीनन है। निदई अकुलीन फी भौति में प्रत उदासी । घेछन ते गी अवही इमें जंग पढीय बन्यो चिनातीं । याँ कवि ग्वाह थिरचि विचारके जारी मिळाय दई अतिघास । जैसाई नंद के पालकु शFई सुतलिट्टी कुव? कस की चाल इनपी गवना पद्माकर कधि की ये गा में हैं। नाम-(१३३७) कान्ह् प्राचीन । जन्मकाळ १८५२ । कविताकाळ १८८० | वियर--नका काव्य संरेस हैं। इनकी मना ताप बसि । | थे यो में हैं। इधर-- झोनम । प्रिया ये तिहारी इथैरी मारी रद्द लग केल। दे हनुम दैसी ही यद फार तुम्हारी कहाँ । सर्क ' काही सुभाउ यई उनके इम इथिन ही पर लिई राथैफ़ी माने। युरी के भले अस्विमूदनेः सा तिहारे नवे