पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५६५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

निबन्नाः । [पः १०१ नहीं जान पड़ा, परम घट् ग्याबिग बगिया को संद- मात्र हैं। इनमें १११ ६६ घारगणा उभार भाप मनीय है। पीपी , परम् इत्यादि इन। (ग्नी के अंतर्गत ६। इसी अपना यहुमाग्दी १ पी पी जान पड़ी है। इस अतिरित एना पक, नशिप भी गर्ने र शिवसिंह सेंगर पुन्तालय में देग्मी ६, भद्मन् १८८४ मा रचित ६। नदी पुन्म विषाद रंग द रिट में हिस्रा ६, पर राधामाधवभिडन तथा राधाष्ट्रकः नागफ । प्रध इनके बार कई गाते हैं। ग्पाल ने मजमापा में पिता का है पर घद शमय भी ६1 यमुना की मांग में इन्दन भय रम पैर पटू तु भी दिमायें ६ । नपा प्राप्त घर जमा घटुन पसन् ॥ पार इन कविता में उनका प्रयोग भी घत हैं। संयव निधि रूप सिद्धि ससि कार्तिक मास मुज्ञान । इनमा परम प्रिय राघी इरि की ध्यान ।। | इयालजमुना के लक्ष नाघे भरी चित्रगुप्त, धने फन के यालि मैरी मति र गई। कान गई यार में पाम त फोम करे, रात की इयाइति से रासनाई गई है। म्याझ कवि कहे ते न कान ६ जमेरा सुनेर, नोकरी काय कट्टा तेरी आँन र गई। लैध मपा पोट्टो रोजनामा के सरैया मी, घाता भये सनम फष रद हैं गई ।