पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५५८

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पघाकर ] सञ्चार्ज प्रक। इथे रथ पालकी गय गृह ग्राम चारु अम्रर गाय चैत छात्रन की सामा है।। मेरे जान मेरे तुम कान्ह है। जगतसिंह तेरे जान तेरी चह चित्र में सुकमा ॥ पाकर, कै मिहीलाल और अप्थामसाद ( उपनाम ज़ ) मामी चा पुत्र थे। गवाधर फत्रि इनके गन्न थे। पाकर के चैधर जयपुर, घाँदा, दुर्तिया पर छत्रपुर आदि माने में रहते हैं। इनके अन्थों का वर्णन हुन ऊपर कर चुके हैं। अव मता इनकी कविता के गुण दीप नीचे लिखे जाते हैं। इनकी कविता का सर्बग्नधान गुण अनुमान है। भापा में किसी पवि ने यर्मक और अन्य अनुपाने का इतना चहार गह किया। इन्हेंने अनुपास इतने अधिक क्या है कि कहीं कहीं यह बुरा मालूम होता है । यथा- मकान मंजुल मलिंद भतयारे मिले मंद मंद मात मुहीम मनसाकी है। या पद्माकर या नादच नदीन मित नागरि मलिन की नज़र निरा की हैं। दोश्त दुरेर देत दधिर से दूर्दै दीद्द दागिनो इगंकनि विसान में दसा की है। मलने वृंदन के बगुलाम पाग मंगलन चैलिन बहार घरा की है।