पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५४९

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५१८ मिश्रपरिना। [सं० १८६, अत्र भी पद्द मन्त्र-गुय देते हैं। संवत् १८४६, में ये महाराज गेसाई अनूपगिरि उपनाम हिम्मतहार के य ।। हिम्मत सद्दार की प्रशंसा में इन्होने ज्ञा कविता की है, और निसा कुछ अंश नीचे दिया जायगा, वह उत्तम है। इन मरसायन नामक |पक रामायण भी पहल हुन्बी चौड़ी घनाई है । पद अन्य प्रकार में यामीकीय रामाययों से कुछ ही छोटा भैार प्रायः उसी को मायानुवाद सा है । रामरस्रायन तु टून रामायण की भांति वैद्दा, चौपाये में पत्नी है । यद्द झया-प्रासंगिक ग्रन्थ है न कि नैपन्न आदि की भांति काव्यछटामद इसके प्रथम तीन कांड (घाउ, अयोध्या, चार अग्य } इमरि पास घर्तमान हैं। ये भारत- जीवन प्रेस में छपे हैं। पद्माफी की अन्य कविता देते ५ एमएसपिन की फपिता की चडुन शिथिल कहना पड़ती है। पद्माकर किसी ग्रन्थ की कविता पेसी बिंथिल भी है। | असते विदित होती हैं कि संवत् १८४९ में झिम्मनयदार के यहाँ जाने मगर, ** हिम्मतभद्र-विरदावली' नामक ग्रन्ध बनाने के पहलै ये महाशय रामरसायन वनाचुके थे। पण्डित नेकदा तिवारी ने लिखा है कि जगनाद बना चुकने के पीछे उन्होंने रामरलायन घनाया है, पर जगह्ननाद की काव्यप्रोढ़ता और राम-रसायम - गी माथिल्लता वेप कर हम यह कथन रिर्स अंश मैं मामगिक नदीं मान सकते ! कविता का गैरष देख कर दम निश्चयपूर्वक फेद सफते हैं कि राम-रसायन पकर का प्रथम प्रध देगा और प्रायः संवत् १८३७ से १८४२ पर्यन्त धना गई । अन्यथा धम् । 1 पद्माकरन प्रहरी न होगा।उदाहरण नीचे लिखा जाता है :-