पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५२२

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१३ अयगोपाल । चित्रकूट इन इस फल र सन्तन के साथ। प्रास ती सय जगत की भी सदा रसुनाय॥ • चित्रकूट सय कामदा पाच पुंज हरि लेत ।। छिन छिन ज़ाल अस बढ़त म भगति का देतः ॥ (११३५) जयगोपाल । काशीपुरी मेहा दारानगर के रहने वाले राधाकृष्ण के पुत्र थे। अपनी जाति यो फुल का कोई पवा इन्ने नहीं दिया है । सन्त रामगुलाम इन के गुरु थे। इन्होंने तंवत् १८७४ | में तुलसी दार्थ प्रकाश नामक भापाक्षेप बनाया, जिस में तीन प्रकाश हैं। प्रथम प्रकाश में वस्तु संग्य-वर्णन, प्रितीय मैं धावार्थ-निर्णय पच' कृतीय में शुद्ध त्यां के शर्थों का कपन है । इनारे पुस्तकालय में इस अन्य का फेवल प्रथम प्रधाश स्ति- लिक्षित है, जिसमें १ से ब्रेकर १८ पर्यन्त व्यों का वर्णन ऐ में हुआ है, जो इस काम से कहा गया है, कि जैसे यदि एक फा वर्णन किया गया, तो उस में जितने पदार्थं एक है उनका कथन कर दिया गया। पुस्तक पयाग है और यदि पूरा प्रन्थ है तै अर्थ समझने में बहुत सहायता दे सकता है। | इमारी हिन्दी भाषा में पापों का अभाव सा है और जो कुछ है भी ये मुदत नहीं हुए हैं। यदि फैज़कर कौपान्य प्रशाशित विथै जाने, ते काप का इतना अभाव कदचित न रहें। हमारे ही -*पास सुर्वस शुरू, छत “अमरकेष भाषा," पं० प्रजराज निरक्ष- | छत दिदी-के ग्रोर पद्द अन्य अपुग मस्तुत हैं। पद विय