पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५२१

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६ अगदि पनन्त अपारा। अमन भग्नान धमः पिशीर वा ३ अरी धाशन प्राप्तिी I अगम अगोचर पल घासा ॥ ५ सय, अनाम अमाया। अप अनामय समय अाया ॥ अकयीय पते अररमा । यमल सैप पर्प यकीमा । त अलिप्त झा उर ध्याऊ । अनुपम अभद्र गुप्त मम गाऊ । वाम नै आराम उमा ! ममद अयामि अभिराम। "सगुन सरूप सदा गुपमा निधान मनु | युति गुम गुमन अगाध वनपात है। भरी नवलेल फैले चिसद मी में जन | सरन न पाये पर झार फलपति से । झh #ज भतेन के शुष मर्म नै सुगति पढ़ायै भन धा धनपति हैं । अवर न दूजी दैव सहज प्रसिद्ध पद्ध सिद्ध यर न लिइ ईस गर्नपति से ॥ (१३३४) नाथूराम चौवे ? आपने संवत् १८६४ में दद्दी द्वारा चित्रकूटठ भामक प साधारया धेशी का अन्य ची। घर में हमने इस देना।