मधपन्धुङ्गिनाइ। [ ३०1८3: भी यढ़िया गया। इनका गाना नैच की की मेरे दलित मुड गंड झंडत मलिंद पृ वंदन विराजे मुइ अदभुन गईन । याल ससि भाल वन लेाचन धिताल रार्ने फोन न माल सुम सदन सुमति की । घ्यावत घिनदी अम टोचत न यार नर पावत अपार भार मेद धन पढेि की। पाप तरफदन में सिंचन नेकदन । अब जाम वंदन करत गनपते । नाम-(११३२)महाराजा सिंह री । पन्थ–१ फाइनरगिरी, २ चरितामृत, ३ सिंह कथा, ४ घामन झथ्य, ५ परशुराम का, ६ इरिचरचट्टिका, ३ कपिलदेवकया, ८ पृथुकथा, ९ नारसनाकुमारकथा, १० स्वपमुव मनु-कथा, ११ दत्तात्रेय-कया, १२ रूपमदैव- यापा, १३ यासचरित्र कया, १५ बलदेवकथा, १६ नरनारा- या-कथा, १६ इरि-अपार-कथा, १७ इयत्रीद-कधी, १८ पछीकी भागवत ।। रचनाफाल—१८०३ से १८९० अफ । ये महागज़ द नरेश थे। इनकी कविता बड़ी ही सरस र मधुर होती थी । इस राज्य में सदैव कपिरों का सम्मान है। रहा है और इनके पुत्र तया पर भी अच्छे कये हुए हैं। इस राज्य से अचिंता का वहुत सहायता पहुँची। इन ग्यमा तेथे
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