पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५१६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुम्हान ] बच्चराकृत प्रकाय् । पड़ता है। ये विक्रम साह घरखारी थाले के यहाँ थे। इन लक्ष्म- तक तथा दनुगमनननशिप नामक ग्रंथ बनाये । हमने लक्ष्मण- शतक देखा है जिसमें कुल १३९ छंद द्वारा मैयनाद और लक्ष्मण का सुद्ध कहा गया है। इन्होंने ब्रजभाषा में ज़ोरदार रचना की है, जै मांसगीष है। घुम इन्हें तैप कचि फी क्षेशी में समझते हैं। आया इंद्रजीत दसकंध के निबंध संध | वैल्यो मतंभु से प्रबंध किरवान । के है अमुमाल का है फाल विकराल मेरे सामुदे भए ने रई मान मऎसान फा ॥ सूतैः सुकुमार यार लच्छन फुमार मेरी | मार घेसुमार का सद्देया घमासान की । धीर ना नितेया रन मदछ रितेयो काल फर वितैया है। जितेया मघवान फेर ।। औज से इनके निर्धारित पंथ और मिले हैं:-अमरप्रकाश, अष्टपाम, ६नुमानपंचक, नुमतपचीखो, इनुमानिपचीसा, नीति- निधान, सनरसार, नृसिहचरित्रग्रीनृसिंपचीसी। इनका एक भैर उदाहरण देते हैं। भूप दसरथ को नवैलै अलबे रन | ल प झेली दल राइस निफर का । मान कवि फीरीत उडी घडी पड़े पति से धर्म शुद्धको दिनकर के । इन्द्र गन्न मंजन की भंजन मंजन व्रनै फा मनरंजन नरजन भरने की ।।