पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५०८

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अत्तात प्रकरण । याद दिये। लुतंस जी लिखते हैं कि उमरावसिंह ने भी “स- चन्द्रिका" नामक ऋग्ध घनाया। आपने उसका एक छंद भी अपने उमरावकैप में उद्धृत किया है। यथा- सीसा के सदन डाय मैं एक प्रासन में बढि लगी स्त्र मनैरथ के धन की । चंपता सुदुर तमाल मनेमाल घा दुति दामिनी की पाक घन अभिराम क ५३ विधु तनु रूप की तरंग ए वन के . भा उमराव छथि लाजै रति काम की। ईस चित्र चेमा है मुनीस मन लोभा लेसि केरमा कवि कहे देसि सेरमा म्यामा स्यापि क; W सुयंस कवि का फैछ यही एक ग्रन्थ हमने वैसा है, जिसमें अमराप के इले म अनुबाद अच्छे छन्दों में किया गया है, और अन्य १८४ पृच्चों में पूर्ण हुआ है। इन्होंने हर एक शश्य के जतने नाम गई । उनी गिनती लिख दी है। लीवासी पं० मुकार जी मिश्च में इसके अंत में एक शब्दागुमगफिर भी लगा यी ४, सिसे अन्य मैर भी उपयोग हे। गया है । इसकी रचना से जान पड़ता हैं कि सुधंस सुकवि थे। इन्दौने बड़ी गार हजभाषा में कविता की है। इनकी म प फयि पी थे। में उनै दें। भती जा छत्र में मन के समान से पचन पियूर के रैयत की दाल भैः ।