पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४९८

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६११ जतू की जीत ] उत्तराकृत प्रकरण । पुगलकिशोर जा ने उनका एक नायिकाभेद पर ग्रन्थ ३ग है, पर नाम मरण नईं हैं ! इन कविता आदरणीय हैं। तुम शून्हें तेइप की शेशी में रखते हैं। विम्यं में प्रज्ञाल में न जपा पुष्पमाल में न 'गुर गुलाल मैं न किचित्रे निदारे में। दम प्रसून में न मून धरा सून में | न च की वधून मैं न गुजर अँधियारे हैं। है कुसुम रंग में न फुकुम पतंम मैं नावफ मी कज्ञ पुज चार ड्रारे में। राधे जु लिइ पदलातेमा की समती के | हेरि हारे कविता न अायत विचारे में ॥ चैाज में सत्तारामविचाह' नामक इनका एक भार प्रन्थ मेला हैं। (१११६) लल्लू जी लाल । उनी लाट गुजराती झाझि, आगरेवाले सुबत् १८६० में वर्तमान थे। ये महाग फत्ते के फड़े विडियम वालेज में मकर थे और अद्द इन्होंने यज्ञभाषामिभिरा घड़ी वाली गद्य का मेमसागर नामक भागधर दम झध की कथा का पफ ग्रन्थ बनाया, जिसमें स्थान स्थान पर कुछ दहा चेपाई भी लिछ। इनके अन्र्यों के नाम नीचे लिने जाते हैं - प्रेमसागर, तारु दिन्छी, राजनीति-सार्तिक (भाषा- हितेपदेश), संग्रह-तभागिलास, माधवविलास, सतसई की