पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४९३

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धिपः । ६० 15 "अट ३ पदनिदा भाज़ पर बंस। गुनधि पाय निहाल के बन्द गतु प्रशंसू ।' वारन ने प्रसाद का नाम लिया है। प्रसाद द्वाड़ा मद्दा रराज का शरीरपान १७१५ में ऐसा था पर छत्रपति महेवा घाटे का सं० १६ ः गभग । इन महाशय ने झा छंद लिम है उसमें ता द्धितिपाल की मृत्यु पर शेर ग्राष्ट्र किया गया । यह ग्रंथ भी यहुत प्राचीन समय का लिया है। इससे इनके पुराने कचि देवाने में संदेह नद्द है। इनका कविताफाल पेश में संयत् १८५७ दिया है और यह भी लिया है कि ये हिन्दूपति पत्रानरेश के यहाँ धै। यह यथार्थ जंचती हैं, क्योंकि हिन्दूपति महाराजा छत्रसाल के चंशधर थे । । ये महाशय पाँ थे, अतः इनका निवासस्थान फनीज्ञ असी या भेगास का हैराना संभव है, क्योंकि मैं अपने को ब्रटकुल अर्थात् जुम कान्यकुन कहते हैं, और पैसे प}ि कनाजियों के मुख्य पान ही हैं ! इस नंध में २५२ छंद हैं, जिनमें रसभेद, ध्यानभेद, गुण, कक्षा इत्यादि चर्णित हैं। प्रेय प्रशंसनीय चना है। इनकी माया यजभाया है और यह लालेत व ४ तिमधुर हैं। इन्होंने फाय- सामग्री का पिशलि बर्णन किया है। मापात्रेमियों से हम इस अन्य ॐ पढ़ने का अनुरोध करते हैं। यह अभी मुद्रित न हुआ है। इम इन तय की श्रेणी में रखते हैं।