पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४८७

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मध्ययनैद । [ १० १८५६ तेरि तर सन छरि अनूपन भूछि गई गल दैन । फासी ॥३॥ घनसार पटीर मिले मिस नीर चई तन चि न लाई आई।

  • मुई विरागिन झार झ६ च६ घन छा। न हानै बाई ।।

म र नुनाग्रत घनी अधीन घई मन सार्दै म लार्य छ । | अ। आधे शिंदेस ते पौतम गेंद चई घन लावै म दावे घई ॥ १ ॥ मालिन । इरया ६ देत चुरी पहिरा, धने चुदिईरी । नान ६' निरपरित केले हमेस कर पाने जेरगिन फैरी ॥ धनी धन धनाय थिरी घरईन घने र राधिका हो । नन्मुक्तिसार उदा सृपभानु फी परि १ ठाई चिर्क' यर चेरी ॥५॥ सेमा पाई कुज भनि जहाँ जहाँ वान्दो न सरल सुगन्ध पनि पाई पनि हे। थिन पिधारे मुताइल मसल पाये मलिन दुसाल साल पाये अनगन है॥ न पाई चाँदनी फटक सी घटक रुख सुख पाया पोतम प्रवीन बेनो धनि है । मेन पाई सारिका पढन लागू रिका | प्राई अभिसारिका कि चार चिन्तामनि है ।। ६ ।। (११०५) जसवन्तसिंह ( तेरवाँ-नरेश ) । असघतलं की चघळे ठाकुर तैरव ६ मा थे। तेरव, जिठा फईबाबाद में एक माजी नौज से पांच पास फी टूरो पर है। शिषतहसपत्र में इनके जन्म का सवत् १८५५ वि० भार