पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४८५

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EE मितिन् । सै० । 'नपरसतरंग' नामः प्रन्य यत् १८७g में प्रनाय ! इसके अर्ध ये 'गारभूपम' मारकः पृष, स्नग्ध बना चुके थे, क्योंकि उसके छः नपरसतरंग में उत किये गये हैं। बेनी नवीन जी का मान न में यह मतमः ।इसई याद ये मादाय मानानाराव के यह रिहर में गये और उनके नाम पर अपनै नाना प्रकाश' नामक ग्रंय यनाया, कि माझार पर्ष बिपय में दिन कयिमियों के समान ६। इसमें कविमिया फी रीति पर यस किया गया है। यह मंध पति नन्दज्ञ मध (उप्रभअपने दार्थ था, परंतु गर्भ जाना था। यह भी बहुत जत्ष्ट था। धन के कई पुत्र नहीं था और अन्त में ये रोगग्रस्त भी है। गये धे, सी पीड़ित हा कर से महाशय सपक पद गिरि पर चले गये और फिर नद्दा दाटे । चद्दी इनका शरीरपास हुआ। यद् सष पुल भाजपैयियों से जाना गया है और संवत् एवं फायदाना- फा हाछ मघरसतरंग में भी हैं । इनका अ फैई भी अन्य मुद्रित नहीं हुआ है । एमारे पास घेछ लिखित पररातरंग हैं। इसमें ६६५ पृष्ठ भार ५५५ छ । ६ । इसमें भावभेद एवं रसभेद का वर्णन है, परन्तु मतिराम एर्ष परफर की मौत इन्दने भी नायिकाभेद से ग्रन्यारम्भ किया और अन्त में सूक्ष्मतयो भाचभेद और रसभेद के शेप भेद भी लिख दिये । इन्ने व्रजभाषा में कचिंता की और अनुष्ठान का भी थोड़ा धेड़िा अदर किया । इनकी भाषा में मिलेत घi बहुत कम आने पाये हैं। इन्वने प्राकृतिक वन कई जगह पर बहुत उत्तम किये। हैं और अमीरी का सामान भी बहुत कुछ दिया है। इनका रूप