पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४७०

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समकाल] | उत्तरात प्रकरणः । 'प्रन्य—सारचन्द्रका । अविवकिाल–१८३७ ।। नाम–१ ०२५) किशोरी अलो साधू । प्रन्थ सारेचन्द्रिका (पृ० ८६ पद्य) 1 कचिठका–१८३७ । विचरर–इन्हें मुसलमान न समझना चाहिए। स भव । शक्ति करनेवाले अपने नाम के पीछे 'अली' प्रायः लिखते हैं। अग्रे सधी के कइले हैं। नाम (१०२६) नवलराम । मन्थ (९) सर्वांसार, (२) नवलसागर । कविताकान्ट–१८३३ । विचर रामचरण के शिष्य। नाम--(१०३७) माधवदास काय, नागासाले ग्रन्थ-(१) करुणाबत्तीसी, (२) नारायलीला, (३) मुहूर्त- चिन्तामणि । कविताका१८३७ । नाम-१२२८) रामचरण्यास साधु (यद महन्त) अयोध्या ।। अन्य-१४) रामनिलद्दरो, (२) काशलेन्द्र इस्प, (३) पिंगल (१४), (४) शनपंचशिका, (५) बद्रततक, (६) रस- मल्लिय, (७) रणचिन्द, (८) दृष्टान्सचेाधिकर, (९) जय- मालफंभइ, (१०) कतारली (१८४५), (१३) तोर्थयात्रा,