पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४५६

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घाराप्त प्रकरण । वर अभय गदा अकुश धन विघन्ट्रन मंगलकरन । फनि धान माझा खरिद दर पक दृन्त जे नुव सरन ।। १ ।। दासन से दाहिनी परम इंसवाहिनी है। पेशी करीना सुर में इस मदत है। आसन कँवल अग अम्बर धवाले मुख्ने | चन्द से। अवलं ग नपल चइत हे । ऐसी मानू भारती की प्राज्ञी कत थान जा ज्ञस विधि ऐसेर पदित पद्धत है। तोकी दादाठि लास पाखर निरन्तर के मुझ है मधुर में अपर कढत हैं ।। ३ || पछुप एरन सुन करने सरभ जन रन बर असे कइत धरनि धर। कलिमल काँलत भलिच अच ब्रल गर्न लत परम पद कुटिल चपट दूर ॥ भन दन सुर सुदन बदन शशि | अभह नवल हुति भजात गत चर। सुर सरि नुव जल पर बरस फरि- सुरसR सम ति का अधम न ॥३॥ माम–(६८३) मानसिई, जुगन नक़वशवाय, कटी ! अन्व–पुट। कविता-फोड–१८५० के लगभग ! इवर--ये मारना मदनपाल के कयि धे । काय साधारण प का है।