पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४५

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मध असबैज 1 गलत प्रकरण । ४६५ छिपे दिवानी से मिलकर शाइस्ता के दल की दुर्गति फरा हाली । धहीं से और गजेब की ओर से अफगानें के जीतने के निमित कायुरू गे गये । यहाँ संवत् ११३८ में इनका शरीरपात हुग्रर ।। ये माशय भापा के देहुत अच्छे फबि धे 1 इनके भाषा- भूप] के अतिरिक्त निम्न लिन्नत ग्रन्थ हैं:-१ अपरीरिकद्धति, २ अनुभबमकार, ३ आनंदविलास, ५ सिद्धांतवेध, ५ मिति लार, ६ अधचंद्रोदय नाटफ। भाषाभूपण को छोड़कर इनके शेप ग्रन्थ चैत के हैं 1 इन्होंने भाषाभूपग नामक २६५ बने। मैं रीति का बड़ाही उत्तम अन्य बनाया। इसमें इन महाराज ने प्रथम शाब गैद कद्दा, परन्तु उसके अ# के उदाहरा न देष फैसल लक्षण दिये। उसके पीछे अर्थकारों का अन्य में बड़ा उत्तम धन है। अलंका में इन्होंने लक्ष्य र उदाहरण दे दिये हैं । सत्र से प्रधग अलंका फा ग्रन्थ धाम में और फिर महाकवि मेंशनदास ने संवत् १६५८ में बनाया । यद् प्रा फॉfiया है। परन्तु फेशवदास भरत मतानुसार नहीं चले। उनके पश्चात् सब से प्रशन परकार ही का वर्णन महाराज जयन्तसिंह ने किया । जिस प्रकार इन्होने अर्धालंकार फड़े हैं, उसी रीति से थे अब भी कई लै ६ । इस अन्य के कारण ये महाराज भाषालंकारों के प्राचार्यय समझ जाते हैं। यह अन्य अद्यावधि महेंका। के ग्रन्थे में बहुत पूज्य हृष्टि से दूर जाता है। माङ्गधार ( अधर) के राज कवि मुरारिदान के जसवन्यज्ञभूमण में भी विदछ हैरता है कि पापग्ण बालय में इन्हीं मान्न था बनाया हुआ है ( देखिए उसका पृष्ठ ३० % )।